संकर धान की प्रमुख किस्म , संकर धान की खेती से लाभ , Sankar Dhan Ki Kheti Kaise Kare , Sankar Dhan Ke Prajatiyan , हायब्रिड धान की खेती कैसे करें , Hybrid Dhan Ki Kheti Kaise Kare , हायब्रिड धान क्या होता है
संकर धान की खेती कैसे करें – धान विश्व की तीन महत्वपूर्ण खाद्यान फसलों में से एक है जो कि 2.7 बिलियन लोगो का प्रमुख भोजन है। धान की खेती विश्व में लगभग 150 मिलियन हेक्टेयर और एशिया में 135 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है। हमारे भारत देश में लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर धान की खेती की जाती है।
धान की खेती विभिन्न परिस्थितियों सिंचित , असिंचित , जल प्लावित असिंचित ऊसरीली एवं बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में की जाती है। विषम परिस्थितियों में भी धान की उत्पादकता बनाये रखने के लिए धान के संकर किस्मों पर और भी बल देने की आवश्यकता है। आज के इस आर्टिकल में हम संकर अर्थात हायब्रिड धान की खेती कैसे की जाती है , संकर धान की प्रमुख प्रजातियां कौन – कौन सी है आदि के बारे में विस्तार से बताएंगे।
संकर धान की कस्मों को दो विभिन्न अनुवांशिक गुणों वाली प्रजातियों के संसर्ग / संकरण से विकसित की जाती है , इनमे पहली सीढ़ी का ही बीज नई किस्म के रूप में प्रयोग किया जाता है , क्योंकि पहली सीढ़ी के बीज में ही विलक्षण ओज क्षमता पाई जाती है जो सर्वोत्तम सामान्य किस्मों की तुलना में अधिक उपज देने में सक्षम होती है। ध्यान रहे अगली पीढ़ी में उनके संकलित गुण घटित होने के कारण अधिक उत्पादन देने में सक्षम नहीं होता , जिस कारण से किसानों को प्रति वर्ष संकर बीज खरीदनी पड़ती है।
संकर धान की खेती सामान्य किस्मों की तरह ही की जाती है। परीक्षणों से सिद्ध हो चूका है कि संकर प्रजातियां सामान्य प्रजातियों की तुलना में 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अधिक पैदावार देती है , क्योंकि इनके प्रति पौध बालियों तथा बालियों में दाने की संख्या अधिक होने के साथ – साथ विषम परिस्थितियों में भी अनुकूल होता है।
भारत में बोये जाने वाले संकर धान की प्रमुख प्रजातियां / किस्में
- के. आर.एच.- 2
- पंत संकर धान – 1
- नरेंद्र संकर धान – 2
- पी.एच.बी. – 71
- एच.आर.आई. – 157
- डी.आर.आर. एच.- 3
- पी.ए.सी. – 835 , 837
- पूसा आर. एच. 10
- प्रो एग्रो 6201
- यू.एस.312
संकर धान की खेती कैसे करें
संकर धान की खेती में बहुत से बातों को ध्यान देना होता है , यदि किसी कारण वश थोड़ी से लापरवाही या कमी धान के पैदावार को प्रभावित करती है। धान बोने के पहले से लेकर फसल की कटाई – मिसाई तक ध्यान देना होता है। संकर धान की खेती करते समय निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
भूमि का चयन – संकर धान की खेती में भूमि का चयन महत्वपूर्ण होता है। संकर धान की अच्छी फसल हेतु दोमट या मटियार भूमि उपयुक्त होती है। इनमे पानी रोकने की क्षमता अधिक होती है।
बीज दर – 15 से 20 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। जो की सामान्य बीज से आधा होता है।
नर्सरी प्रबंधन – संकर धान का नर्सरी प्रबंधन अन्य अधिक उत्पादन देने वाले सामान्य धान से अलग होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में संकर धान रोपने के लिए 700 से 800 वर्ग मीटर की नर्सरी पर्याप्त होती है। नर्सरी की बुआई से पहले 100 किलोग्राम नत्रजन , 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर के दर से डालनी चाहिए। नर्सरी में यदि जस्ता या लोहे की कमी के लक्षण दिखाई पड़े तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट और 0.2 प्रतिशत फेरस सल्फेट की घोल की छिड़काव करना चाहिए।
बीज का उपचार – शुष्क बीजों को 24 घंटे पानी में भिगोने के बाद कार्बेन्डाजिम 50 % डब्ल्यू पी 2 ग्राम प्रति किलोग्राम धान के हिसाब से उपचारित करना चाहिए। उपचारित बीजों को पक्के फर्स पर छाँव में फैलाकर बोरा से ढंककर पानी की छिड़काव करते रहना चाहिए जिससे नमी बनी रहे और बीजों का अंकुरण अच्छे से हो सके।
रोपाई – 25 से 30 दिन उम्र के दो – तीन कल्लो वाले एक से दो पौधों की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर की गहराई पर पंक्ति से पंक्ति 15 सेंटीमीटर की दुरी पर करना उचित रहता है , जिससे कम से कम प्रति वर्ग मीटर 45 से 50 पूंजी अवश्य रहे। एक सप्ताह के बाद मरे हुए पौधें के स्थान पर उसी संकर प्रजाति के दूसरे पौधे की रोपाई करनी चाहिए।
उर्वरक प्रबंधन – संकर धान की अच्छी पैदावार लेने के लिए 75 किलोग्राम नत्रजन , 15 किलोग्राम पोटास तथा आवश्यकता अनुसार 25 किलो जस्ता प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी तथा फास्फोरस और पोटास की मात्रा रोपाई के समय तथा नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में कल्ले बनते समय तथा गोभ बनते समय देना चाहिए। जहाँ तक संभव को भूमि के परिक्षण उपरांत ही उर्वरक और उसकी मात्रा निर्धारित करनी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 10 से 15टन गोबर खाद अथवा हरी खाद का प्रयोग किया जाना चाहिए।
सिंचाई – भूमि में लगातार नमी बनाये रखना चाहिए , दाना भरने की अवस्था में 5 से.मी. तक पानी भरके रखना चाहिए। जिससे धान की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।
खरपतवार नियंत्रण – रोपाई में एक सप्ताह के अंदर ब्यूटाक्लोर 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। अथवा दो – तीन निदाई गुड़ाई के 20 से 30 दिन बाद खरपतवार पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है।
फसल सुरक्षा – धान का बंका , तना छेदक , सैनिक कीट एवं धान की गंधी प्रमुख कीट है। कीट रसायन का उपयोग कीट के अधिक प्रकोप के समय ही करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो एकीकृत कीट प्रबंधन की विधिया अपनाई जाए। शाकाणु तथा झुलसा रोग संकर प्रजाति पर अधिक लगते है जिस कारण से बीजोपचार हुए बीज का ही उपयोग करना चाहिए।
कटाई , मड़ाई तथा उपज – 50 प्रतिशत बालियां निकलने के 20 दिन बाद या बाली के निचले दानों में दूध बन जाने के बाद पानी निकाल देना चाहिए। जब बाली 85 – 90 प्रतिशत सुनहरे हो जाए या पक जाए तो उसकी कटाई करनी चाहिए। अवांछित पौधे को कटाई के पहले ही खेत से निकाल देना चाहिए।
बीज की शुद्धता का मूल्यांकन – शुद्ध बीज की पहचान हेतु पारम्परिक ग्रो आउट टेस्ट के जगह मालिकुलर विधि से कम लागत में बीजों की शुद्धता एवं गुणवत्ता की पहचान किया जा सकता है।
सावधानियां – संकर धान की किस्मो की अनुवांशिक क्षमता का भरपूर लाभ लेने हेतु इसका बीज हर साल नया प्रयोग करना चाहिए क्योंकि संकर धान से उत्पादित फसल / बीज दूसरे साल कम उत्पादन देती है। दूसरे वर्ष की फसल में ऊंचाई , परिपक्वता , दाने आदि में कमी आ जाती है। जबकि संकर धान के पहले पीढ़ी में पर्याप्त एकरूपता एवं गुणवत्ता होती है।
संकर धान के खेती से लाभ – संकर धान की खेती से सामान्य धान की खेती के तुलना में प्रति हेक्टेयर 12 से 15 क्विंटल धान अधिक पैदावार देती है। संकर धान से प्रति एकड़ लगभग 10 हजार रूपये की अधिक लाभ होती है।
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