मशरूम की खेती कब और कैसे की जाती है

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मशरूम की खेती कब और कैसे की जाती है – मशरूम जिसे क्षेत्रीय भाषाओं में कुम्भ , छत्रक , पीहरी , गर्जना एवं धरती के फूल आदि नामों से जाना जाता है। पौष्टिकता एवं अन्य बहुमूल्य गुणों के कारण रोम में इसे फ़ूड आफ गॉड (भगवान का भोजन ) कहा जाता है। भारत में इसे सब्जियों का मल्लिका कहा जाता है। मशरूम की खेती से अच्छी खासी इनकम भी कमाया जा सकता है। मशरूम की खेती के लिए बहुत बड़े जगह की आवश्यकता भी नहीं होती , आवश्यकता अनुसार इसे घर पर ही एक कमरे में आसानी से उगाया जा सकता है। आज के इस आर्टिकल में आप मशरूम की खेती कब और कैसे की जाती है उसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

मशरूम वनस्पति कुल के ही फफूंद का एक समूह है जो कि मांशल युक्त क्लोरोफिल रहित होता है , इसके बीजाणु इसके गलफड़ों में पाए जाते है। अनुकूल परिस्थितियों में प्रतिकूल अवस्था में सड़े गले पदार्थो पर उग जाता है। मशरूम के वैसे तो अनेक प्रजातियां पाई जाती है जिनमे से कुछ खाने योग्य होती है वहीँ कुछ मशरूम विषैले होते है। मशरूम की खेती से अच्छी खासी आमदानी लिया जा सकता है। लेकिन मशरूम की खेती के लिए कुछ सावधानियों की भी आवश्यकता होती है। इसे बंद कमरे में कुछ अनुकूल वातावरण के साथ उगाया जा सकता है। मशरूम की खेती कब और कैसे की जाती है उसकी जानकारी आप इस पोस्ट में विस्तार से देखेंगे। कृपया सही और सटीक जानकारी के लिए इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़ें।

मशरूम की खेती क्यों करें

  • फसलों के अवशेषों तथा कृषि आधारित कुटीर उद्योग धंधों से निकलने वाले अवशेष पदार्थो का उपयोग।
  • बंद कमरे में खेती करने के कारण कम से कम जगह में आसानी से खेती किया जा सकता है।
  • पोषकीय एवं औषधीय गुणों से भरपूर।
  • विभिन्न रोगो के प्रति रोगप्रतिरोधी क्षमता।
  • प्रत्येक आयु वर्ग के लिए रोजगार का साधन।
  • आय का अतिरिक्त स्त्रोत।
  • कुटीर उद्योग धंधों का बढ़ावा देना।
  • प्रति इकाई क्षेत्रफल में अधिक उत्पादन।
  • वातावरण के अनुकूल (इकोफ्रेंडली )
  • निर्यात के माध्यम से विदेशी मुद्रा का अर्जन

प्राकृतिक दशा में खरीफ में दो प्रकार के मशरूम की खेती

1 – दुधचट्टा मशरूम

2 – धान के पुआल का मशरूम

दुधचट्टा मशरूम – यह मशरूम देखने में अत्यंत आकर्षक एवं स्वादिष्ट होता है। इसकी खेती सर्वप्रथम भारत वर्ष में शुरू हुई है। वर्तमान में इसकी खेती समुद्री इलाकों के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश , बिहार , पंजाब , हरियाणा , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ एवं अन्य प्रदेशों में की जा सकती है।

उपयुक्त प्रजातियां

कैलोसाइव इंडिका

कैलोसाइव इस्कुलेंटा

समय – जुलाई से अक्टूबर और तथा फरवरी से अप्रैल तक खेती की जा सकती है।

मशरूम की खेती की विधि

आधार सामग्री की तैयारी – इस मशरूम की खेती हेतु गेहूं के भूसे को बोरे में भरकर रातभर के लिए साफपानी में भिगो दिया जाता है। यदि आवश्यक हो तो 7 ग्राम कार्बेन्डाजिम (50 प्रतिशत) तथा 115 मिली लीटर फार्मलीन के दर से प्रति 100 लीटर पानी मिला दिया जाता है। इसके पश्चात् भूसे को बाहर निकालकर पानी को निथार लिया जाता है। जब भूसे में 70 फ़ीसदी नमी हो तो बिजाई के लिए तैयार हो जाता है।

बिजाई – दुधचट्टा मशरूम की बिजाई ढींगरी मशरूम की भांति ही किया जाता है परन्तु इस्पान की मात्रा ढींगरी मशरूम से दोगुनी की जाती है। तथा बिजाई के बाद थैली में छिद्र नहीं बनाये जाते। बिजाई के बाद तापक्रम 28 – 32 डिग्री होना होता है। बिजाई पश्चात इन थैलों को फसल कक्ष में रख देते है।

आवरण मृदा लगाना – बिजाई में 20 से 25 दिन बाद फफूंद पुरे भूसे में सामन रूप से फ़ैल जाती है। इसके बाद आवरण मृदा तैयार कर 2 – 3 इंच मोती पर्त थैली के मुंह को खोलकर ऊपर सामान रूप से फैला दिया जाता है। इसके पश्चात् पानी के फब्बारे से इस तरह मृदा आवरण के ऊपर सिंचाई की जाती है। सिंचाई से आवरण के आधी परत ही भीगने चाहिए। मृदा आवरण के 20 से 25 दिन बाद आवरण के ऊपर बिंदुनुमा आकृति दिखाई देने लगती है। इस समय फसल कक्ष का तापमान 32 से 35 डिग्री होने चाहिए। वहीँ अपेक्षित आद्रता 90 फीसदी होने चाहिए। अगले 3 से 4 दिन बाद मशरूम तोड़ने योग्य हो जाता है।

उपज – सूखे भूसे के भार का 70 से 80 फीसदी उत्पादन होती है।

धान के पुआल मशरूम

इस मशरूम को गर्मी का मशरूम तथा चाइनीज मशरूम कहा जाता है। इस मशरूम की खेती 1822 में सर्वप्रथम चीन में हुई थी। यह बहुत ही कम समय में तैयार होने वाला मशरूम है। भारत में इस प्रजाति के मशरूम की खेती प्रायः समुद्रीतट वाले राज्यों जैसे – पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , कर्नाटक , तमिलनाडु , आँध्रप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में प्रमुखता के साथ किया जाता है।

समय – जून से सितम्बर

उपयुक्त प्रजातियां

वाल्वेरियल्ला डिप्लेसिया , वाल्लेरियल्ला वाल्वेसिया

मशरूम की खेती की विधि

आधार सामग्री की तैयारी – आधार सामग्री की तैयारी तथा धान की सैय्या बनाने हेतु धान के वाल लगभग 1.25 किलोग्राम के 35 बंडलों की आवश्यकता होती है। इन बंडलों को रातभर साफ पानी में भिगोया जाता है। इसके बाद इन बंडलों को निथारकर अतिरिक्त पानी को बाहर निकाल दिया जाता है। 68 से 70 फ़ीसदी नमी रहने पर इन बंडलों को फसल कक्ष में ईंट के बने या बांस के बने फ्रेम पर इस प्रकार रखा जाता है कि एक दूसरे का सीरा लगभग 6 इंच एक दूसरे के ऊपर रहे।

बिजाई – अब इन बंडलों के ऊपर 50 ग्राम स्पान तथा 20 ग्राम चने के बेसन को सामान रूप से छिड़क देते है। इसी तरह से सभी बंडलों के परत पर स्पान एवं बेसन को छिड़क दिया जाता है। इसके बाद पूरी थैली को सफ़ेद पॉलीथिन से ढँक दिया जाता है। फसल कक्ष का तापमान 32 से 35 तथा आद्रता 85 से 90 फ़ीसदी तक बनी रहनी चाहिए। बुआई के एक सप्ताह के बाद फफूंद पुरे पुआल में फ़ैल जाती है। सैय्या के किनारे बटन के आकर के मशरूम निकलने लगते है। इस समय पालीथीन हटाकर तापमान एवं आद्रता बनाए रखना होता है। अगले 4 से 5 दिनों में मशरूम अंडाकार दिखाई देने लगती है। इसी अवस्था में ही मशरूम को तोड़ लेने चाहिए।

उपज – सूखे पुआल के भार पर 60 से 70 फीसदी उपज प्राप्त हो जाता है।

मशरूम स्पान प्राप्त करने के स्त्रोत

  • पादप रोग विज्ञान विभाग चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपूर।
  • पादप रोग विज्ञान विभाग गोविन्द वल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंत नगर उत्तरांचल।
  • पादप रोग विज्ञान विभाग राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय उदयपुर राजस्थान।
  • पादप रोग विज्ञान विभाग महात्माफुले कृषि विद्यापीठ पूना महाराष्ट्र
  • पादप रोग विज्ञान विभाग हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय , हिसार हरियाणा

मशरूम उत्पादन हेतु प्रशिक्षण

मशरूम उत्पादन में प्रशिक्षण एक महत्वपूर्ण अंग है। क्योंकि बिना प्रशिक्षण प्राप्त किये कोई व्यक्ति मशरूम का सफलतापूर्वक उत्पादन नहीं कर सकता। सभी सामग्री का सही मात्रा में प्राप्त करने सम्बन्धी जानकारी के लिए निम्न केंद्रों से संपर्क किया जा सकता है।

  • राष्ट्रिय खुम्ब अनुसन्धान केंद्र बम्बाघाट सोलन हिमाचल प्रदेश
  • पादप रोग विज्ञान विभाग चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपूर।
  • पादप रोग विज्ञान विभाग इंदिरागांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़
  • पादप रोग विज्ञान विभाग आई आई एच आर बंगलौर कर्नाटक
  • उद्यान विभाग मेघालय शिलांग
  • उद्यान निदेशालय लखनऊ उत्तर प्रदेश
  • उद्यान निदेशालय ईटानगर अरुणाचल प्रदेश

सारांश – मशरूम की खेती कैसे की जाती है उसकी जानकारी हमने विस्तार से दिया है। यदि आप भी मशरूम की खेती करने के इच्छुक है तो सबसे पहले अपने नजदीकी कोई भी मशरूम उत्पादन प्रशिक्षण केंद्र से प्रशिक्षण प्राप्त कर लेवें , क्योंकि प्रशिक्षण पश्चात ही मशरूम की अच्छी से खेती किया जा सकता है। मशरूम की यदि अच्छे से खेती किया जाय तो मार्किट में इसके भारी मांग को देखते हुए अच्छा खासा इनकम प्राप्त किया जा सकता है। कृपया इस जानकारी को सभी तक अवश्य शेयर करें ,,, धन्यवाद।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न )

मशरूम की खेती कैसे की जाती है ?

मशरूम की खेती करने के हमने विस्तार से जानकारी ऊपर दिया है कृपया इस आर्टिकल का अच्छे से अध्ययन करें।

मशरूम के मुख्य प्रकार कौन – कौन से है ?

मशरूम खरीफ सीजन के लिए मुख्यतः दो प्रकार का होता है पहला दुधचट्टा मशरूम और दूसरा धान के पुआल का मशरूम।

मशरूम की खेती से कितना कमाया जाता है ?

यदि आप मशरूम की अच्छे से खेती करते है तो प्रति माह 75 हजार रु.से 1. 00 लाख रूपये महीने का कमाया जा सकता है।

मशरूम के बीज स्वान कहाँ मिलते है ?

मशरूम के बीज या स्वान आपके नजदीकी किसी बड़े शहरों से लिया जा सकता है अथवा ऑनलाइन भी मंगवाया जा सकता है। यदि आप चाहे तो ऊपर दी गई पादप रोग विज्ञान अथवा कृषि विश्वविद्यालयों से भी संपर्क बना सकते है।

नोट – शासकीय योजनाओं (केंद्र एवं राज्य सरकार) तथा खेती किसानी की उन्नत जानकारी सहित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के लिए सर्च करें www.nayayojna.in ,,,,, धन्यवाद।

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