धान की खेती कैसे करें , आधुनिक एवं उन्नत तकनीक

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धान की खेती कैसे करें – धान भारत देश सहित कई एशियाई देशों की प्रमुख फसल है। धान की खेती करने के वैसे तो कई विधि है , लेकिन हम आप लोगो को इस आर्टिकल में धान की खेती के आधुनिक एवं उन्नत तकनीक की जानकारी बताएंगे। आधुनिक एवं उन्नत तकनीक से खेती करने से कम लागत में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है। हमारे देश में करोड़ों किसान खरीफ सीजन में धान की खेती करते है। खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान को देश के सभी राज्यों में बहुतायत में उगाई जाती है। धान के फसल को उगाने के साथ – साथ हमारे देश में भोजन के रूप में सबसे ज्यादा चावल का ही उपयोग किया जाता है।

धान की खेती की शुरुआत नर्सरी से होती है , इस लिए बीजों का अच्छा होना बहुत आवश्यक है। कई बार किसान बाजार से महंगा से महंगा बीज एवं खाद का उपयोग करता है लेकिन खर्चा के अनुसार उपज नहीं हो पाता। इस लिए धान की बीज की बुआई या रोपाई करने से पहले बीज एवं खेत का उपचार होना आवश्यक है। बीज का महंगा होना जरुरी नहीं है बल्कि विश्वसनीय और आपके क्षेत्र के मिट्टी , जलवायु और पानी के उपलब्धता के आधार पर अनुकूल होना आवश्यक है। धान के परंपरागत खेती करने के तरीके को बदलकर आधुनिक एवं वैज्ञानिक तरीके से खेती करने से उत्पादन में वृद्धि किया जा सकता है।

धान की खेती कैसे करें

धान की खेती करने के वैसे तो कई तरीके मौजूद है , लेकिन यदि वैज्ञानिक विधि से और उन्नत तरीके से खेती की जाए तो अधिक पैदावार लिया जा सकता है। धान की उन्नत खेती करने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • स्थानीय परिस्थितियों जैसे क्षेत्रीय , जलवायु , मिटटी सिंचाई साधन , जलभराव तथा बुआई एवं रोपाई के अनुकूलता के अनुसार ही संस्तुत प्रजातियों का चयन करें।
  • शुद्ध प्रामाणिक एवं शोधित बीज बोएं।
  • मृदा परिक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों , हरी खाद एवं जैविक खाद का संतुलित मात्रा में उपयोग करें।
  • उपलब्ध सिंचाई क्षमता का पूरा उपयोग कर समय से बुआई एवं रोपाई कराएं।
  • पौधे की संख्या प्रति इकाई क्षेत्रफल के हिसाब से सुनिश्चित की जाए।
  • कीट , रोग एवं खरपतवार का नियंत्रण किया जाए।
  • कम उर्वरक दे पाने की स्थिति में भी 2:1:1 ही रखा जाए।

भूमि की तैयारी – गर्मी की जुताई करने के बाद 2 – 3 जुताइयां करके खेत की तैयारी करनी चाहिए। साथ ही मजबूत मेड़बंदी करनी चाहिए ताकि पानी में अधिक समय तक रोका जा सके। हरी खाद के साथ – साथ बुआई के समय फास्फोरस का भी उपयोग करना चाहिए। धान की बुआई एवं रोपाई करने के एक सप्ताह पहले खेत की सिंचाई कर दे जिससे खरपतवार उग जाए। धान की बुआई और रोपाई के समय खेत में पानी भरकर अच्छे से जुताई कर देवें।

प्रजातियों का चयन – धान की खेती सिंचित एवं असिंचित दशाओं में सीधी बुआई एवं रोपाई की जाती है। मिट्टी , जलवायु , सिंचाई के साधन आदि को ध्यान में रखकर उपयुक्त प्रजाति का चयन किया जाना चाहिए। धान की कुछ मुख्य प्रजातियां – नरेंद्र 118 , नरेंद्र 80 , मनहर , पूसा – 169 , पंत धान -10 , एनडीआर – 8002 , साकेत 4 आदि।

शुद्ध एवं प्रामाणिक बीज – प्रमाणित बीज से अधिक उत्पादन मिलता है और कृषक अपनी उत्पाद (संकर प्रजातियों को छोड़कर ) को ही अगली बीज के रूप में उपयोग कर सकते है। तीसरे वर्ष पुनः प्रमाणित बीज का उपयोग करें।

उर्वरकों का संतुलित प्रयोग एवं विधि – उर्वरकों का प्रयोग मृदा परिक्षण के आधार पर ही करना चाहिए। यदि किसी कारण से मृदा परिक्षण न हुआ हो तो निम्नानुसार उर्वरक का उपयोग किया जा सकता है।

शीघ्र पकने वाली (हेक्टेयर / किलो ) – नत्रजन – 120 , फास्फोरस – 60 , पोटास – 60

मध्यम समय में पकने वाली (हेक्टेयर / किलो ) – नत्रजन – 150 , फास्फोरस – 60 , पोटास – 60

देर से पकने वाली (हेक्टेयर / किलो ) – नत्रजन – 160 , फास्फोरस – 60 , पोटास – 60

जलप्रबंधन – देश में सिंचाई के कई साधन होते हुए भी 20 से 25 प्रतिशत खेतों में पानी पहुँच पाती है। यदि स्वयं का सिंचाई का साधन है तो उस हिसाब से धान के किस्म का चुनाव करना चाहिए। धान के रोपाई के एक सप्ताह बाद , कल्ले फूटते समय , फूल खिलते समय , दाना भरते समय खेत में पानी बने रहना चाहिए। खाद्यान फसलों में धान ही सबसे अधिक पानी लेती है। धान की अच्छी फसल हेतु पुरे समय धान की खेत को भरे रहना जरुरी नहीं है। खेत में नियमित पानी बने रहने से खरपतवार भी कम उगते है।

बीज शोधन – नर्सरी डालने से पूर्व बीज का शोधन करना बहुत जरुरी होता है। जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहां पर 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या 40 ग्राम प्लानटोमैसीन को पानी में मिलाकर रातभर पानी में भीगा के रखें , दूसरे दिन छाया सुखाकर नर्सरी डाले।

नर्सरी – एक हेक्टेयर क्षेत्रफल की रोपाई के लिए 800 – 1000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में रोपाई के लिए महीन धान का 30 किलोग्राम , मध्यम धान का 35 किलो ग्राम एवं मोटे धान का 40 किलोग्राम की आवश्यकता होती है। एक हेक्टेयर नर्सरी से करीब 15 हेक्टेयर खेत की रोपाई की जा सकती है। समय से नर्सरी में बीज डाले और सही मात्रा में उर्वरक का उपयोग करें।

सीधी बुआई – मैदानी इलाका में सीधी बुआई के दशा में 90 – 110 दिन में पकने वाले धान की प्रजाति का चुनाव करना चाहिए। बुआई मध्य जून से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक पूर्ण कर लेने चाहिए। 40 से 50 किलो ग्राम बीज लाइनों में 20 सेंटीमीटर की दुरी पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बोना चाहिए। यदि लेव लगाकर धान की बुआई की जाए तो प्रति हेक्टेयर 100 से 110 किलो ग्राम धान की बुआई करनी चाहिए। लेई बोवाई के लिए धान को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखने के बाद कम से कम 36 से 48 घंटे ढेर बनाकर रखे उसके बाद बुआई करें।

समय से रोपाई – 130 से 140 दिनों में पकने वाले धान की प्रजाति को जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के मध्य तक अवश्य कर लेनी चाहिए। इसके बाद यदि रोपाई की जाएगी तो उपज में निरंतर कमी आएगी। शीघ्र पकने वाले धानों में जून के मध्य से जुलाई के अंत तक रोपाई किया जा सकता है। रोपाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दुरी 15 सेंटीमीटर होने चाहिए। साथ ही एक स्थान पर दो से तीन पौधे लगाना चाहिए।

उचित गहराई और दुरी पर रोपाई – बौनी प्रजाति के धान की रोपाई 3 से 4 सेंटीमीटर तक ही करना चाहिये , ज्यादा गहराई पर रोपाई करने से कल्ले कम निकलेंगे। जिससे कम उत्पादन होगा। साधारण उर्वरा भूमि में धान की रोपाई 20 बाय 10 एवं सेमि उर्वरा भूमि में 20 बाय 15 से। मी. धान से धान एवं पंक्ति की दुरी होने चाहिए।

सारांश – धान की खेती कैसे करें ? हमने धान की खेती करने के लिए कई बिंदुओं में महत्वपूर्ण जानकारी ऊपर बताया है। यदि उक्त सभी बातों का ध्यान रखा जाए तो निश्चित ही उत्पादन क्षमता में वृद्धि होगी। परंपरागत खेती को छोड़कर नए एवं आधुनिक खेती तकनीक को अपनाने से निश्चित ही उत्पादन में वृद्धि किया जा सकता है उक्त जानकारी यदि आपको अच्छा लगे तो कृपया सभी को अवश्य शेयर करें,, धन्यवाद।

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