बासमती धान की खेती कैसे करें , सुगन्धित धान की खेती कैसे करें , सुगन्धित धान की उन्नत प्रजातियां , Basmati Dhaan Ki Kheti Kaise Kare , Sugandhit Dhaan Ki Kheti Kaise Kare , Sugandhit Dhaan Ki Prajatiyan , बासमती धान की किस्में , Basmati Dhaan Ki Prajatiyan
बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती कैसे करें – बासमती धान विश्व में अपनी एक विशिष्ट सुगंध एवं स्वाद के लिए जाना जाता है। बासमती धान की खेती भारत में पिछले सैकड़ों वर्षों से होते आ रही है। भारत तथा पकिस्तान को बासमती धान का जनक माना जाता है। हरित क्रांति के बाद भारत में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता प्राप्त करके बासमती धान की विश्व में मांग तथा भविष्य में इसके निर्यात की अत्यधिक संभावनाओं को देखते हुए बासमती धान की वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने की अत्यंत आवश्यकता हो गई है। किसी भी फसल के अधिक उत्पादन के साथ – साथ अच्छी गुणवत्ता में फसल की किस्मों का अधिक महत्त्व है। आज के इस आर्टिकल में आप बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती कैसे की जाती है उसकी सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।
बासमती चावल में विशिष्ट सुगंध एवं स्वाद होने के कारण इसके विभिन्न किस्मों का अलग – अलग महत्त्व है। बासमती धान की पारम्परिक प्रजातियां प्रकाश संवेदनशील , लम्बी अवधि तथा अपेक्षाकृत लम्बाई में अधिक ऊंचाई की होती है। जिस कारण अन्य धानों की अपेक्षा बासमती धान की उपज कम होती है। लेकिन बासमती धान की नई उन्नत किस्में अपेक्षाकृत कम ऊंचाई , अधिक खाद एवं उर्वरक चाहने वाली तथा अधिक उपज देने वाली है। सामान्यतः बासमती धान की खेती भी अन्य किस्मों के धान के सामान ही होती है , लेकिन बासमती धान की पैदावार करने वाले किसानों को कई बातों पर ध्यान देना आवश्यक होता है। जिससे कम लागत में भी बासमती धान की अच्छी उत्पादन लिया जा सके।
बासमती एवं सुगन्धित धान के उन्नत शील किस्में
- टाइप 3
- बासमती 370
- तरावड़ी बासमती
- सीएसआर 30
- पूसा बासमती – 1
- उन्नत पूसा बासमती – 1
- पूसा सुगंध – 3
- पूसा सुगंध – 2
- पंत सुगंध – 1
- पंत सुगंध – 5
- पूसा 1121
- नरेंद्र सुगंध
- मालवीय 4 – 3
- पूसा आरएच 10 (संकर)
बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती कैसे करें
भूमि का चयन – भूमि की संरचना जलवायु एवं अन्य सम्बंधित कारक बासमती धान की सुगंध एवं स्वाद को अत्यधिक प्रभावित करते है। बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती के लिए अधिक जल धारण करने वाले चिकनी या मटियारी मिट्टी उपयुक्त होती है।
प्रजातियों का चयन – बासमती धान की अच्छी पैदावार तथा उत्तम गुणवत्ता लेने के लिए अच्छी प्रजाति का चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक अच्छी प्रजाति में निम्न लिखित गुण होने चाहिए।
- अधिक पैदावार
- उत्तम गुणवत्ता
- कीट तथा रोग के लिए प्रतिरोधी
- कम ऊंचाई तथा कम समय में पकने वाली
- बाजार में अच्छी मांग तथा उच्च कीमत वाली होने चाहिए।
बीज शोधन – नर्सरी डालने से पहले बीज शोधन अवश्य कर लेवें जहाँ पर जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या हो वहां पर 25 किलोग्राम बीज के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट या 40 ग्राम प्लानटोमैसीन को पानी में मिलाकर रातभर पानी में भीगा के रखें , दूसरे दिन छाया सुखाकर नर्सरी डाले।
बीज की मात्रा तथा बीजोपचार – प्रजाति के अनुसार बासमती धान के लिए 25 – 30 किलोग्राम धान प्रति हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होती है। 2 ग्राम प्रति किलोग्राम धान के हिसाब से कार्बेन्डाजिम द्वारा उपचारित करके बोना चाहिए।
पौध तैयार करना – बासमती धान की पौध तैयार करने के लिए उपजाऊ तथा अच्छे जल निकास और सिंचाई स्त्रोत के पास वाले खेत का चयन किया जाना चाहिए। 700 वर्गमीटर के नर्सरी के पौधे एक हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए पर्याप्त होती है। जल्दी पकने वाले बीज हेतु जून का दूसरा पखवाड़ा तथा देर से पकने वाली बीज के लिए जून का तीसरा पखवाड़ा अच्छा होता है। पौध शाला में सड़े हुए गोबर तथा कम्पोस्ट खाद को मिटटी में मिला देने चाहिए।
मिट्टी की अच्छी तैयारी – पौधे की रोपाई लगाने के लिए जमीन को पहले दो – तीन जुताई करने के बाद उसमे पानी भरकर पाटा चलाकर बरोबर करना चाहिए। साथ – खेत को छोटे – छोटे क्यारियों में भी बाँट देना चाहिए। रोपाई से पहले 10 वर्गमीटर क्षेत्रफल में 225 ग्राम अमोनियम सल्फेट या 100 ग्राम यूरिया और सुपर फास्फेट को अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। आवश्यकता अनुसार निदाई , गुंडाई , खरपतवार नियंत्रण आदि कर लेना चाहिए।
उचित गहराई और दुरी पर रोपाई – बौनी प्रजाति के धान की रोपाई 3 से 4 सेंटीमीटर तक ही करना चाहिये , ज्यादा गहराई पर रोपाई करने से कल्ले कम निकलेंगे। जिससे कम उत्पादन होगा। साधारण उर्वरा भूमि में धान की रोपाई 20 बाय 10 एवं सेमि उर्वरा भूमि में 20 बाय 15 से। मी. धान से धान एवं पंक्ति की दुरी होने चाहिए।
खाद एवं उर्वरक – बासमती धान में खाद एवं उर्वरक की आवश्यकात सामान्य धान की तुलना में आधी लगती है। परन्तु नई उन्नत प्रजातियों में ऊंचाई कम होने के कारण नत्रजन की मांग परंपरागत प्रजातियों की तुलना में अधिक हो गई है। बासमती धान की नए प्रजातियों में 90 – 100 किलोग्राम नत्रजन , 40 किलो फास्फोरस , 30 किलोग्राम पोटास प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
सिंचाई – धान की फसल को सबसे ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता होती है , इसलिए धान की फसल को उचित पानी की उपलब्धता वाले जगह पर ही उगाने चाहिए। पानी का उचित प्रबंधन नहीं होने से उपज में भारी गिरावट आ जाती है। दाना बनने की अवस्था तक खेत में पानी बनाए रखना चाहिए। पर्याप्त वर्षा नहीं होने पर लगातार सिंचाई करते हुए नमी बनाये रखना चाहिए। फसल के कटाई के 15 दिन पहले खेत से पानी निकाल देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण – खरपतवार नियंत्रण हेतु धान की रोपाई लगाने से पहले और रोपाई के बाद उगने वाले खरपतवार की निदाई – गुड़ाई करनी चाहिए। साथ ही आवश्यकतानुसार खरपतवारनाशी का उपयोग करना चाहिए।
कीट एवं रोग नियंत्रण – धान के फसल में अन्य फसलों के तुलना में अधिक कीट एवं रोग लगते है खासकर बासमती धान में ज्यादा रोग और कीट लगने की संभावना बनी रहती है। रोग एवं कीट उत्पादन को काफी प्रभावित करते है।
बासमती धान को नुकसान पहुंचाने वाला कीट
- धान का भूरा एवं सफ़ेद फुदका
- धान का तना बेधक
- गंधी कीट
- धान का पट्टी लपेटक कीट
बासमती धान के निम्नलिखित प्रमुख रोग मुख्य रूप से अधिक नुकसान पहुँचते है
- धान का झोंका (ब्लास्ट ) रोग
- धान का भूरा धब्बा रोग
- धान का पर्ण छेदक झुलसा रोग
- धान की जीवाणु पत्ती झुलसा रोग
- धान का खैरा रोग
- धान का मिथ्या कंडुआ रोग
- धान का पर्णच्छेदन विगलक रोग
कटाई एवं मड़ाई – बासमती धान के 90 प्रतिशत बालियां जब 90 फ़ीसदी सुनहरे रंग की हो जाए तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। देरी से कटाई या मड़ाई में विलम्ब होने से उपज प्रभावित होती है।
सारांश – बासमती एवं सुगन्धित धान की खेती करने के लिए आवश्यक बातों को हमने विस्तार से बताया है उम्मीद है यह जानकारी आपलोगो को अच्छी लगेगी। बासमती धान सहित अन्य प्रजातियों के धान की खेती करने में बहुत सावधानियों ककी आवश्यकता होती है। बीज की मात्रा , मिट्टी की तैयारी , नर्सरी , रोपाई , सिंचाई प्रबंधन , खाद एवं उर्वरक की मात्रा आदि पर विशेष ध्यान देने पर अच्छी उत्पादन लिया जा सकता है। ,,, कृपया इस जानकरी को सभी लोगो तक अवश्य शेयर करें ,,,, धन्यवाद।
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